Sharad Joshi

व्यंग लेखन साहित्य की दुनिया में सबसे सशक्त विधा है, पर साथ ही उतनी ही मुश्किल और जटिल भी है। एक गंभीर समस्या पर तंज़ भी किया जाये और वो कटुता से भी दूर हो। बिना कड़वाहट उड़ेले अपनी बात कह देने की ये कला चंद लोगों ने बड़ी निपुणता के साथ निभाई है। हिंदी साहित्य के व्यंग्य लेखन में शरद जोशी उस्तादों में गिने जाते हैं। अपनी ज़िन्दगी में उन्होंने कहानियां लिखीं, dialogue और script writing की, धारावाहिकों के लिए लेखन किया - पर व्यंग्य लेखन उनकी पहचान बना रहा। आज 21 मई 2022 को उनकी 91वीं सालगिरह है। पढ़िए उनकी कलम के चंद व्यंग जो एक अरसे बाद भी प्रासंगिक है

नसीहत हमेशा ऐसी दो जिससे सामने वाले को फ़ायदा हो चाहे न हो, मगर जल्दी या देर से हमे ज़रूर हो।

जिनके दामन में दाग़ होता है, वे शायरी से कतराते हैं। शायरों से कतराते हैं। कुल मिलाकर शब्द मात्र से कतराते हैं। फिर चाहे वे पत्रकारिता के ही क्यों न हो। 

बिटिया ब्याहने से लेकर कारख़ाना खड़ा करने तक, हमारे सारे सपने उधारी के दमबूते पर टिके हैं। 

मनुष्य के जीवन में धर्म का कितना भी महत्वपूर्ण स्थान हो, पर वह रोटी से ऊपर नहीं है। 

डॉलर धर्म से बड़ा होता है। 

ख़ूब बुराइयाँ होगी जब मिल बैठेंगे सयाने दो, और जब तीन सयाने मिले तो चौथे की और चार मिले तो पाँचवे की बुराइयाँ करें। 

चर्च बने या मस्जिद काम तो गरीब को मिलता है। 

भारत से दर्शन इसलिए गायब हो गया क्योंकि लोग दर्शनों में लग गए। 

Darshan ko darshan ne maara is a signature Sharad Joshi style of satire. अब दर्शन philosophy भी होती है, दर्शन देखने से भी ताल्लुक़ रखता है और दर्शन अमूमन नाम भी होता है। तो कौन से दर्शनों की बात हो रही है, किस दर्शन ने किस दर्शन को मारा? सुनिए प्रेरक व्यास की आवाज़ में।



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